Showing posts with label राग परिचय. Show all posts
Showing posts with label राग परिचय. Show all posts

मेघ मल्हार

 


राग - मेघ मल्हार  
थाट - काफी 
जाति - औडव - औडव 
वादी - म 
सम्वादी - सा 
स्वर - नि कोमल शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर - ग ध
न्यास के स्वर - नि सा म रे 
समय - रात्रि का दूसरा प्रहर 
सम प्रकृतिक राग - मधुमाद सारंग 
आरोह -सा रे म रे प म प नि सां 
अवरोह - सां नि प म रे प रे s  
पकड़ - प नि सा रे , रे , म  प नि प म रे सा 


यह गंभीर प्रकृति  का राग हैं  इस राग को वर्षा ऋतू में इस राग को हर समय गाया - बजाया  जा सकता हैं इसलिए इस राग को ' मेघराज ' के नाम से भी जाना जाता हैं यह एक अति मधुर राग हैं और इसका चलन तीनो सप्तकों में किया जा सकता हैं  यह मीड प्रधान राग हैं रे पर म का कण इस राग की एक विशेषता हैं इस राग में मींड, गमक का खूब प्रयोग होता हैं कोमल नि पर प का कण लिया जाता हैं रे पर किए जाने वाले आन्दोलन  से इस राग को पहचानने में सहायता मिलती हैं इस राग के स्वे मधुमाद सारंग के समान हैं परन्तु वादी स्वर अलग (रे) होने और म रे स्वर संगति में मींड के उपयोग न किये जाने से इसमें भिन्नता आ जाती हैं रे प स्वर संगति मल्हार अंग को प्रदर्शित करती हैं 

मियां मल्हार

 


 राग -मियां मल्हार 

थाट - काफी 

जाति - सम्पूर्ण -षाड़व 

वादी - सा  

सम्वादी  - प 

स्वर - ग नि कोमल शेष शुद्ध 

वर्जित स्वर - अवरोह में ध

न्यास के स्वर- सा रे प 

समय - मध्य रात्रि 

सम प्रकृतिक राग - बहार 




राग मियां मल्हार सभी संगीतज्ञों का पसंदीदा राग हैं  यह पूर्वांग प्रधान गंभीर प्रकृति का राग हैं इसमें करुण रस की प्रधानता होती हैं  आम बोलचाल में इसे मिया मल्लार भी कह दिया जाता हैं यह मौसमी रागो के अंतर्गत रक्खा जाता हैं यह राग  वर्षा ऋतू का राग हैं इसीलिए इस राग में बादल, बिजली, वर्षा आदि शब्दों का प्रयोग जरूर पाया जाता हैं     

 इसका चलन तीनो सप्तकों में होता हैं परन्तु यह मंद और मध्य सप्तक में अपेक्षाकृत अधिक गाया जाता हैं इसमें गंधार पर आंदोलन किया जाता हैं इसमें नि ध और   रे प स्वर संगति विशेषतः देखने को मिलती हैं इस राग का आविष्कार तानसेन द्वारा मन जाता हैं संगीतज्ञों का मानना  हैं की यह राग दरबारी और मल्हार के मिश्रण से बना हैं 

नायकी कान्हड़ा

 राग - नायकी कान्हड़ा

 थाट - काफी 

जाति- षाड़व  -षाड़व

 वादी - म

सम्वादी - सा 

स्वर - ग नि कोमल शेष शुद्ध 

समय - रात्रि का तृत्य प्रहर 

वर्जित स्वर - ध

न्यास के स्वर - म  सा 

सम प्रकृतिक राग - शाहना 




नायकी कान्हड़ा उत्तरांग प्रधान राग हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं नायकी कान्हड़ा का निर्माण  विषय में यह कहा गया है कि इसका निर्माण देवगिरीके दरबारी गायक पंडित गोपाल नायक जी के द्वारा किया गया हैं सके पूर्वांग में


सुहा व उत्तरांग में सारंग का योगे बताया गया हैं परन्तु भावभट्ट ने अपने ग्रंथ अनूप विलास में इस राग को मल्हार व कान्हड़ा का योग बताया हैं 

कुछ संगीतज्ञों द्वारा इसमें ध को वर्जित न करते हुए कोमल ध का प्रयोग करते है और इसे सम्पूर्ण जाती का राग मान क्र गाते हैं परन्तु यही अभी इतना प्रचार में नहीं आया हैं  कुछ विद्वानों के मतानुसार यह राग कान्हड़ा, कौशिक और बागेश्री रागो से मिलकर बना हैं 

नायकी कान्हड़ा उत्तरांग प्रधान राग हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं नायकी कान्हड़ा का निर्माण  विषय में यह कहा गया है कि इसका निर्माण देवगिरीके दरबारी गायक पंडित गोपाल नायक जी के द्वारा किया गया हैं सके पूर्वांग में सुहा व उत्तरांग में सारंग का योगे बताया गया हैं परन्तु भावभट्ट ने अपने ग्रंथ अनूप विलास में इस राग को मल्हार व कान्हड़ा का योग बताया हैं 

कुछ संगीतज्ञों द्वारा इसमें ध को वर्जित न करते हुए कोमल ध का प्रयोग करते है और इसे सम्पूर्ण जाती का राग मान क्र गाते हैं परन्तु यही अभी इतना प्रचार में नहीं आया हैं  कुछ विद्वानों के मतानुसार यह राग कान्हड़ा, कौशिक और बागेश्री रागो से मिलकर बना हैं 

पूरिया कल्याण


राग - पूरिया कल्याण
ठाट - कल्याण 
जाति  - सम्पूर्ण -  सम्पूर्ण 
वादी - ग 
सम्वादी- नि 
स्वर - रे म शेष शुध्द 
न्यास के स्वर - ग प नि 
समय - रात्रि का प्रथम प्रहर 






इस राग के पूर्वांग में पुरिया और उत्तरांग में कल्याण राग के स्वर लगते हैं कुछ विद्वान इस राग में दोनों ऋषभ का प्रयोग भी करते हैं कोमल रे को अवरोह में तथा तीव्र रे को आरोह में प्रयोग किया जाता हैं परन्तु आजकल  केवल कोमल रे को ही गाने का प्रचलन अधिक हैं यह एक मधुर राग हैं इसमें ग प की संगति विशेष वैचित्रय

उतपन्न करती हैं इस राग में प स्वर अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं  कभी कभी इसके आरोह और अवरोह में सा लंघन कर दिया जाता हैं और स राग में रे(कोमल ) म(तीव्र ) ग  की संगति देखने को मिलती हैं 


राग - भूपाली


 राग - भूपाली 

थाट - कल्याण  

जाती - औडवऔडव

वादी  ग 

सम्वादी - ध

स्वर - सभी शुद्ध स्वर  

वर्जित स्वर - म नि 

न्यास के स्वर ग  प  ध

समय -  रात्रि का प्रथम प्रहर 

सम प्रकृतिक राग - देशकार 

आरोह - सा रे ग प ध सां 

अवरोह - सां ध  प ग रे सा 

पकड़ - सा ध रे सा, ग रे ग ,प , ग ध , प , ध सां , ध रें सां l

                                                                                                                        यह पूर्वांग प्रधान राग हैं , इसका चलन मंद्र और मध्य सप्तक में अधिक पाया जाता हैं क्षीण भारतीय संगीत में इसे राग मोहनम के नाम से जाना नाता हैं इस राग में ध रे  सा संगति प्रमुख हैं इसका विस्तार तार सा में अल्प ही होता हैं इसमें श्रंगार रसब प्रधान बंदिशे अति मधुर लगती हैं यदि राग के उत्तरांग में धैवत को प्रबल कर दिया जाये तो इसमें देशकार की छांया आ जाती हैं देशकार , जैत कल्याण , और शुद्ध कल्याण तीनो एक दूसरे से मिलते जुलते राग ही हैं 

राग-यमन





राग-यमन 
थाट - कल्याण 
जाती - सम्पूर्ण-सम्पूर्ण 
वादी -  ग 
सम्वादी - नि 
स्वर - म तीव्र शेष शुद्ध 
न्यास के स्वर - ग प नि 
गायन समय -रात्रि का प्रथम प्रहर 
सम प्रकृतिक राग -यमन कल्याण 

राग यमन गंभीर प्रकृतिक का पूर्वांग प्रधान राग हैं यह अपने थाट का आश्रय राग हैं इसका प्राचीन नाम कल्याण भी हैं कई   स्थानों पर इसे ऐमन ,ईमन आदि अन्य नामो से भी जाना जाता हैं इस राग का प्रारम्भ सा से न करते हुए नि से किया जाता हैं जैसे - नि रे ग म प s   
 


जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर आरोह करते हुए विस्तार करते हैं तब प को छोड़ते  हुए चलते हैं राग नि - रे  व  प - रे स्वर  संगतिया विशेष रूप से देखने को मिलती हैं कुछ विद्वानो  द्वारा म को शुद्ध रूप में विवादी स्वर के रूप में प्रयोग कर लिया जाता हैं यह एक अत्यंत मधुर राग हैं और बहुत प्रचार में भी हैं 

Add

राग - बिहाग





राग - बिहाग
थाट -बिलावल 
जाति - औडव - सम्पूर्ण 
वादी - ग
सम्वादी - नि 
स्वर - सभी शुद्ध 
वर्जित स्वर - आरोह में रे ध 
न्यास क स्वर - सा ग प नि 
गायन समय - रात्रि का दूसरा प्रहर
आरोह - सा ग, म प, नि सां 
अवरोह - सां , नि ध  प , म  ग ,रे सा 
पकड़ - नि सा, ग म प , ग म ग ,रे सा 

                  यह थाट बिलावल से उत्पन्न राग है कुछ  गायक वादक इसे अवरोह में तीव्र म का प्रयोग करते हैं परंतु इसके अलावा कभी-कभी तीव्र म का प्रयोग नहीं किया जाता है अवरोह में म का प्रयोग ऐसे विवादी स्वर की भांति किया जाता है जो राग का सौंदर्य बढ़ाता है आजकल जो संगीतज्ञ इस राग में म तीव्र करके गाते हैं वे इसका थाट , कल्याण थाट को मानते हैं यदि इस राग में कोमल नि का प्रयोग किया जाता तो राग विहागड़ा का  निर्माण होगा राज बिहाग का विस्तार मंद्र और मध्य सप्तक में अधिक पाया जाता है इस राग में  नि का  खुला प्रयोग किया जाता है यह गंभीर प्रकृति का है इस राग में बड़े व छोटे ख्याल गते,तराने और ध्रुवपद गाए व बजाए जाती हैं 
Add caption

राग बिलवाल


राग - बिलावल 
थाट - बिलावल 
जाती - सम्पूर्ण - सम्पूर्ण 
वादी - ध 
सम्वादी - ग 
स्वर - सभी शुद्ध   
वर्जित स्वर - आरोह में म 
समय - दिन का प्रथम प्रहर 
सम प्रकृतिक राग  - अल्हैया  बिलावल 
आरोह  - सा ,ग रे ग, प ,ध ,नि ध नि सां 
अवरोह - सां नि ध, प,  ध नि ध प, म ग, म रे सा 
पकड़ - गा रे ग प ध नि सां
राग बिलवाल को बिलावल और शुद्ध बिलावल के नाम से भी जाना जाता हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं यह उत्तरांग प्रधान राग हैं इसे प्रातः काल का कल्याण कह कर भी पुकारा जाता हैं यदि इस राग में  म को वर्जित कर दे और स्वर नि ध का वक्र प्रयोग किया जाये तब यही राग अल्हैया बिलावल बन जायेगा | प्राचीन ग्रंथ बेलवली में भी इसका उल्लेख पाया जाता हैं इस राग में ध और म की संगति अति प्रिय लगती हैं 

राग काफी


 राग - काफी
थाट - काफी 
जाति - संपूर्ण-संपूर्ण 
वादी - प   
संवादी - रे 
स्वर  -  ग नि कोमल शेष शुद्ध
न्यास क स्वर - प, रे, सा   
समय - रात्रि का दूसरा प्रहर 
आरोह - सा रे म प ध नि सां 
अवरोह  - सां नि ध प म रे सा 
पकड़ - सा सा  रे रे म म प S 
यह आपने ठाट का जन्य राग हैं अर्थात यह आश्रय राग हैं  शूद्र और चंचल प्रकृति का राग होने क कारण इसमें छोटे ख्याल, भजन, ठुमरी , होली गायन आदि अति प्रिये लगते हैं भजन और होली गायन के लिए इसे उपुक्त राग माना जाता हैं वैसे तो इस राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना जाता हैं परन्तु इसे सर्वकालिक राग मान कर किसी भी समय गा बजा लिया जाता हैं 
इसके सम्वादी स्वर में भी मतभेद पाया जाता हैं कुछ विद्वान इसको रे मानते हैं तो कुछ इसको सा मानते हैं दक्षिण भारत में इसे खरहर प्रिया नामक मेल के नाम से जान जाता हैं 

राग मधुवंती



राग-मधुवंती 
थाट -तोड़ी 
जाति - ओड़व - सम्पूर्ण 
वादी - प 
सम्वादी - रे 
स्वर - ग कोमल और म तीव्र, शेष शुद्धा
वर्जित स्वर - आरोह में रे ध 
न्यास के स्वर - ग प 
समय - दिन का तीसरा प्रहर 
सम प्रकृतिक राग मुल्तानी 

मधुवंती राग बहुत प्राचीन राग नहीं हैं इसे आधुनिक रागो की श्रेणी में ही रक्खा जाता हैं कही कही इसे राग अम्बिका के  नाम से भी जाना जाता हैं l राग मुल्तानी और पटदीप इसके सम्प्रकृतिक राग हैं यदि मुल्तानी में रे ध को शुद्ध कर दिया जाता हैं तो राग मधुवंती का निर्माण होता हैं
  वैसे तो यह राग किसी थाट का नहीं माना जाता ,परन्तु क्योकि किसी न किसी ठाट में इसे रखना ही हैं इसलिए इसे तोड़ी ठाट क अंतर्गत रक्खा गया हैं परन्तु व्यंकट मुखी के 72 थाटों में इसे धर्मवती नामक थाट के नाम से जाना जाता हैं 



राग तोड़ी


राग - तोड़ी 
थाट - तोड़ी 
जाती - संपूर्ण- संपूर्ण 
वादी-
संवादी-
स्वर - रे   म (तीव्र )
न्यास  के स्वर -
समय - दिन का  दूसरा प्रहर
 सम प्राकृतिक राग- गुर्जरी तोड़ी
यह राग  उत्तरांग प्रधान राग है माना जाता  हैं की  इसकी रचना मिया तानसेन ने की थी इसलिए इसे मिया की तोड़ी के नाम से भी जाना जाता हैं इसके पूर्वांग में गंधार और उत्तरांग  ग  में धैवत पर न्यास किया जाता हैं तोड़ी राग में रे का प्रयोग अल्प होता हैं और ग का अधिक प्रयोग होता हैं यही गंभीर प्रकृति  का राग हैं और बहुत ही कठिन परन्तु मधुर राग हैं इसमें बड़े व् छोटे ख्याल दोनों ही शोभादेते हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होता है तोड़ी के  अनेक प्रकार पाए जाते हैं

राग मालकोंस



राग - मालकौंस
थाट - भैरवी 
जाती - औडव -औडव 
वादी -म 
संवादी -सा 
स्वर - ,, नि शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर - रे प 
न्यास के स्वर - सा, म 
समय - रात्रि का तीसरा प्रहर 
सम प्रकृतिक राग - चंद्रकौंस 
राग मधुवंती को एक पुरुष राग भी कहा जाता हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं 
 इसका चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होता हैं 
इसमें मींड ,कण खूब प्रयोग किये जाते हैं 
ध, म की संगति कौंस अंग मानी जाती हैं  इस राग का नि स्वर शुद्ध कर देने से यह राग चंद्रकौंस बन जाता हैं 




राग जयजयवंती

                 

 राग - जयजयवंती 
थाट - खमाज 
जाती - सम्पूर्ण सम्पूर्ण 
वादी - रे 
सम्वादी - प 
स्वर - दोनों ग, नि शेष शुद्ध
समय - रात्रि का प्रथम प्रहर    
न्यास के स्वर - सा रे प 
सम प्रकृतिक राग - देस 
आरोह - सा ध नि  रे, रे ग म प, नि सां 
अवरोह - सां नि --ध प म ग रे , रे रे सा 
पकड़ - रे रे सा ,नि सा ध नि रे 
यह गंभीर प्रकृति का राग हैं यह परमेल प्रवेशक राग हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में किया जाता हैं इस राग में
दोनों ग तथा नि प्रयोग किये जाते हैं | रे  रे स्वर समूह में दोनों रे क मध्य हमेशा ग कोमल ही आएगा और ध नि रे सा स्वर समूह के सतह हमेशा कोमल नि ही आयेगा  आरोह में प के साथ शुद्ध नि का प्रयोग होगा 
यह राग  दो  अंगो  में  गया  जाता  हैं एक देश अंग और दूसरा बागेश्री अंग | परंतु जयजयवंती  में कोई स्वर वर्जित नहीं होता | प्राचीन शाश्त्रो में इसे द्विजवंती के नाम से भी जाना जाता हैं 

राग बागेश्वरी



थाट - काफी      
जाति- ओड़व - सम्पूर्ण 
वादी- म 
सम्वादी- सा
 स्वर - ,नि कोमल शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर -आरोह में रे प 
समय - रात्रि  का दूसरा प्रहर 


यह एक गंभीर प्रकृति का राग है मधुर एक मधुर और कर्णप्रिय राग होने के कारण उप शास्त्रीय संगीत शैली में और सुगम संगीत में इसकी अनेक बंदिशें देखने को मिलती है बागेश्वरी में धनश्री और कान्हड़ा का योग माना जाता हैं इस राग की जाति के विषय में विद्वानों में मतभेद पाया जाता हैं इसका चलन तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है। ग्रंथों में इसका सम प्राकृतिक राग श्रीरंजनी को बताया जाता है। 



राग -भीमपलासी


राग -भीमपलासी
थाट - काफी 
जाति - ओड़व - संपूर्ण
वादी- म 
संवादी - सा 
स्वर- ग नि 
वर्जित स्वर -आरोह में रे ध 
समय - दिन का तीसरा प्रहर 
प्राकृतिक राग - बागेश्री 
आरोह - नि सा म प नि सां
अवरोह - सां नि ध प, म प , म ग, रे सा
 पकड़ -नि सा म ,म प  , म , ,रे सा

   यह बहुत ही मधुर और लोकप्रिय राग है यह दो रागों भीम + प्लासी के मिश्रण से बना है  यह  गंभीर प्रकृति का राग है इसका चलन तीनों सप्तको में है परंतु मंद्र सप्तक में अधिक खिलता है यह पूर्वांग प्रधान राग है  इसमें  ध्रुपद धमार खयाल तराने आदि रचनाएं  गाई जाती है जो भक्ति और श्रंगार रस से परिपूर्ण होती  है इसमें स म प नि स्वरों स्वरूप का वैचित्र्य उत्पन्न करता है राग में सा म और प ग की संगति  देखने को मिलती है
 

बिलासखानी तोड़ी

राग -बिलासखानी तोड़ी
ठाट -भैरवी 
जाती - षाड़व -सम्पूर्ण 
वादि -  
सम्वादी-  
स्वर- रे,,,नि 
वर्जित स्वर -आरोह में म
समय - दिन का दूसरा प्रहर 
न्यास के स्वर -, प , 
समप्रकृतिक राग-भैरवी 
  इस  राग के स्वर भैरवी जैसेेेेेे हैं परंतु इसका चलन तोड़ी जैसा है वर्तमान समय में यह राग काफी प्रचार में है इसके आरोह में नि अल्प होता है और इसका गंधार अति कोमल होता है इस राग कि जाति  विषय में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है कुछ विद्वान इसकी जाति षाड़व -षाड़व तो कुछ इसे सम्पूर्ण- सम्पूर्ण जाती का मानते हैं 
 बिलासखानी तोड़ी का निर्माण तानसेन के पुत्र विलास खान के द्वारा किया गया है इसके संबंध में यह कथा
प्रचलित है कि गिलास खान ने तानसेन के कहने पर इस राग को गाकर कुछ समय के लिए तानसेन को जीवित कर लिया था  कुछ समय पहले तक यह  राग इतना प्रचलित नहीं था परन्तु आजकल यह राग बहुत ही प्रचलित राग हैं 

राग - मारू बिहाग




राग - मारू बिहाग
थाट - कल्याण
जाति -औडव - संपूर्ण 
रस्वर - दोनों म शेष शुद्ध
वादी - ग
संवादी - नि
गायन समय - रात्रि का प्रथम प्रहर
वर्जित स्वर - रे ध आरोह में
न्यास के स्वर - ग ,प, नि
सम प्रकृतिक राग - कल्याण और विहाग


 यह राग बहुत अधिक प्राचीन तो नहीं है परंतु यह लोकप्रिय बहुत है इसीलिए ही इस राग में अधिक
प्राचीन बंदिश से नहीं मिलती। इस राग का चलन तीनों सप्तक में समान रुप से होता है यह दो रागो कल्याण तथा विहाग के मिश्रण से बना है इस राग के आरोह में शुद्ध म का प्रयोग केवल सा के साथ ही किया जाता है राग में पहले ध का प्रयोग राग विहाग के समान शीघ्रता से करते हैं और बाद में कल्याण के समान पर ठहराव के साथ ध का प्रयोग करते हैं रे स्वर का प्रयोग भी उसी प्रकार से किया जाता है राग के अवरोह करते हुए म ग म ग की संगति की जाती है राग में अधिक प्रयोग  में तीव्र म ही किया जाता है

राग अल्हैया बिलावल









राग -अल्हैया बिलावल
थाट- बिलावल
जाति- षाडव-संपूर्ण
वादी-ध
संवादी-ग
स्वर- दोनों नि
वर्जित स्वर- म (आरोह में)

गायन समय - दिन का प्रथम प्रहर 
न्यास के स्वर - सा ग प नि
आरोह - सा रे ग रे ग प ध नि सां
अवरोह - सां नि ध प, ध नि ध प ,म ग रे सा
पकड़ - ग रे ग प नि ध नि सां
                यह उत्तरांवादी राग है इसका चलन मध्य और तार सप्तक में अधिक होता है राग बिलावल में जब आरोह में म को वर्जित कर दिया जाता है और अवरोह हमें नी को कोमल कर लिया जाता है तो राग अल्हैया बिलावल बनता है इस राग में ध ग  स्वरो में स्वर संगति देखने को मिलती है जिसे मींड द्वारा लिया गया जाता है इस राग में ग, नि  स्वरों का वक्र प्रयोग देखा जाता है जैसे- ध नि ध प , ग रे ग ।
 कोमल नि का प्रयोग दो न स्वरों के मध्य किया जाता है जैसे - ध नि ध । यह राग गंभीर प्रकृति का राग है इसमें ख़्याल, तराने, द्रुपद आदि गाए जाते हैं

राग - शुद्ध कल्याण

            

राग -  शुद्ध कल्याण
थाट - कल्याण
जाति - औडव - संपूर्ण
वादी - ग
संवादी -ध
स्वर - म ( तीव्र ) शेष शुद्ध
वर्जित स्वर - म नि (आरोह में)
गायन समय - रात्रि का प्रथम प्रहर
सम प्राकृतिक राग - यमन, देशकार ,भूपाली
आरोह- सा रे ग प ध नि सां
अवरोह - सां नि ध प म(तीव्र) ग रे सा
पकड़ - ग ,रे सा, नि ध प सा, ग रे प रे, सा
यह गंभीर प्रकृति का राग है इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में अधिक होता है ऐसा माना जाता है कि शुद्ध कल्याण की उत्पत्ति भूपाली और कल्याण रागो के मेल से हुई है इसीलिए कई लोग इसे भूप कल्याण कहकर भी पुकारते हैं इस राग में रे और प स्वर संगति देखने को मिलती है जो राग को विशेष रंजकता प्रदान करती है राग के आरोह में म और नि स्वरों को वर्जित किया जाता है परन्तु अवरोह में भी इनका प्रयोग अल्प ही रहता है क्योकि  अवरोह में अक्सर प से ग पर आते हुए म (तीव्र) को मींड की सहायता से ही लिया जाता  है इसके साथ नि का प्रयोग भी इस कारण से कम ही किया जाता है क्योंकि इससे राग कल्याण की छाया आने की आशंका रहती है तान प्रस्तुत करते हुए तो म स्वर को पूर्णतः छोड़ ही दिया जाता है जबकि नि स्वर का प्रयोग अवरोह में कुछ गायको द्वारा देखा जा सकता है ऐसा राग को भूपाली से भिन्न दिखने में सहायता होता है