उत्तरी , दक्षिणी संगीत

                                                                       



प्राचीन काल में सम्पूर्ण भारत में संगीत केवल एक पद्धति थी  किन्तु आज हम देखते है की संगीत की दो पद्धतिया हो गयी है कुछ विद्वानों का मत है की उत्तरी संगीत पर अरब और फ़ारसी संगीत का प्रभाव पड़ा जिससे उत्तरी संगीत दक्षिणी संगीत से अलग हो गया का कहना है उनका कहना है की 16वी. शताब्दी में भारत में मुसलमानो का आगमन शुरू हुआ और धीरे धीरे वे उत्तर भारत के शासक हो गए | अतः भारतीय संस्कृति , सभ्यता और संगीत पर उनकी अमिट छाप पड़ गयी परन्तु दक्षिणी भारत में कोई हस्तक्षेप न होने के कारण वहां का संगीत अपरिवर्तित रहा इस तरह हम  देखते है की उत्तरी और दक्षिणी इन दोनों पद्धतियो का मूल आधार एक ही है परन्तु समय के साथ कुछ बदलाव आ गए

1. उत्तर भारतीय संगीत पद्धति :-
                                              इसे हम हिंदुस्तानी संगीत पद्धति भी  कहते  है| भारत के  अधिकतर भागो में यही पद्धति प्रचलित है इस पद्धति का नाम ही  यह स्पष्ट होता है की   
यह उत्तर भारत में अधिक प्रचलन में है  भारत में यह पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात,, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा, आदि राज्यों क साथ अन्य भी कई राज्यों में प्रचिलित है

2. दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति :-
                        जैसा क नाम से ही स्पष्ट होता है की यही दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक प्रचिलित है |जैसे :-मैसूर,  आंध्रप्रदेश ,तमिलनाडु  आदि |इस पददति को हम कर्णाटकीय संगीत
पददति के नाम से भी जानते है 

दोनों पद्धतियों में समानता:--
 
1 . दोनों पद्धतियों में 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है और उनके स्वर स्थान भी लगभग समान है              
2 . जिस प्रकार उत्तर भारत में थाट की मान्यता है उसी प्रकार दक्षिण भारत में मेल थाट की मान्यता है
     मेल और थाट एक दूसरे क पर्यायवाची है
3 . दोनों पद्धतियों में स्वर लय और ताल  का विशेष  महत्व है 
4 . दोनों पद्धतियों में कुछ ताल भी समान है
5 . दोनों पद्धतियों के कुछ राग भी स्वर की दृष्टि से समान है और कुछ रागो के नाम भी दोनों पद्धतियों में पाए जाते है हंसध्वनि राग दोनों पद्धतियों में
   जन्य राग है और समान स्वर वाला है और अड़ाना ,श्री , धनश्री ,रजनी और दोनों पद्धतियों में पाए जाते है परन्तु इनके स्वर भिन्न होते है
   हमारे भजन ,ख्याल ,तराना और ठुमरी कर्नाटक में क्रमशः कीर्तनम ,तिल्लाना और जावली से अधिक मिलते है 
6 . दोनों पद्धतियों में गायक को अपनी कल्पना से गाने की पूरी स्वतन्त्रता रहती है किन्तु आचार- विचार का अंतर होने के कारण कल्पना करने का ढंग अलग है 

 दोनों में भिन्नताएं:-

1 . यधपि दोनों पद्धतियों में 12 स्वर होते है फिर भी कुछ स्वरों के नाम भिन्न भिन्न है उत्तर भारतीय संगीत
      पद्धति के कोमल स्वर रे और ध दक्षिण  भारतीय संगीत पद्धति में शुद्ध रे ,ध के नाम से  जाते है और ये शुद्ध 
      नई को ककली निषाद कहते है
2 . उत्तर भारतीय संगीत  में 10 थाट है और दक्षिण भारतीय संगीत में 19  थाट माने जाते है
3 . दक्षिण भारतीय संगीत में कठोर बंधन है की यहा की बंदिशों में कोई परिवर्तन नहीं लाया जा सकता
      यह बंदिश की मौलिकता पर अधिक ध्यान दिया जाता है परन्तु उत्तर भारत में ऐसे कठोर नियम नहीं
      है यह गायक    
      बंदिश में अपनी इच्छा अनुसार परिवर्तन कर सकते है
4 . उत्तर भारत में ताल के लिए तबला और दक्षिण भारत में ताल के लिए मृदंगम प्रयुक्त होता है .
5 . उत्तर भारतीय संगीत  में स्वर की सिथिरता और गंभीरता पर विशेष ध्यान  दिया जाता है और दक्षिण
       भारतीय संगीत  में स्वर के कंपन और चंचलता पर अधिक ध्यान दिया जाता है
6 . दक्षिण  भारतीय संगीत  में यह प्राचीन नियम है के गायक गांय के बिच में मृदंग बजानी वाले को अपनी  
       कला के प्रदर्शन का समय देते है परन्तु उत्तरी  भारतीय संगीत  में तबले का प्रयोग संगीत को सुंदर
       बनाने   
       के लिए किया जाता है तबलियो को अपनी कला का परिचय देने के लिए अलग से समय दे दिया जाता है 
       जिसे स्वतंत्र वादन कहा जाता है   

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