राग - पूर्वी
थाट - पूर्वी
जाति - सम्पूर्ण - सम्पूर्ण
वादी - ग
सम्वादी - नि
स्वर - रे ध कोमल म तीव्र शेष शुद्ध
न्यास के स्वर - सा ग प
गायन समय - सांयकाल
सम प्रकृतिक राग - पुरिया
राग पूर्वी गंभीर प्रकृतिक का राग है इस राग का चलन मन्द्र और मध्य सप्तकों में अधिक होता है यह अपने
थाट का आश्रय राग है इस राग में बड़े ख्याल ,छोटे ख्याल ,व् गतो को मींड ,कण , मुरकी आदि का खूब प्रयोग देखने को मिलता है आरोह करते हुए इस राग में अधिकतर प स्वर को छोड़ दिया जाता है आरोह में केवल तीव्र म का प्रयोग होता है परन्तु अवरोह में दोनों म (शुद्ध और तीव्र ) का प्रयोग होता है दो ग के बिच में म ( ग म ग ) स्वर का प्रयोग राग में सुंदरता से किया जाता है इस राग में सा ग प स्वरों का प्रयोग पर राग की विचित्रता निर्भर करती है