राग -अल्हैया बिलावल
थाट- बिलावल
जाति- षाडव-संपूर्ण
वादी-ध
संवादी-ग
स्वर- दोनों नि
वर्जित स्वर- म (आरोह में)
गायन समय - दिन का प्रथम प्रहर
न्यास के स्वर - सा ग प नि
आरोह - सा रे ग रे ग प ध नि सां
अवरोह - सां नि ध प, ध नि ध प ,म
ग रे सा
पकड़ - ग रे ग प नि ध नि सां
यह उत्तरांवादी राग है इसका चलन मध्य और तार सप्तक
में अधिक होता है राग बिलावल में जब आरोह में म को वर्जित कर दिया जाता है और
अवरोह हमें नी को कोमल कर लिया जाता है तो राग अल्हैया बिलावल बनता है इस राग में ध
ग स्वरो में स्वर संगति देखने को मिलती है
जिसे मींड द्वारा लिया गया जाता है इस राग में ग, नि स्वरों का वक्र प्रयोग देखा जाता है जैसे- ध नि
ध प , ग रे ग ।
कोमल नि का प्रयोग दो न स्वरों के मध्य किया जाता
है जैसे - ध नि ध । यह राग गंभीर प्रकृति का राग है इसमें ख़्याल, तराने,
द्रुपद आदि गाए जाते हैं
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