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राग काफी


 राग - काफी
थाट - काफी 
जाति - संपूर्ण-संपूर्ण 
वादी - प   
संवादी - रे 
स्वर  -  ग नि कोमल शेष शुद्ध
न्यास क स्वर - प, रे, सा   
समय - रात्रि का दूसरा प्रहर 
आरोह - सा रे म प ध नि सां 
अवरोह  - सां नि ध प म रे सा 
पकड़ - सा सा  रे रे म म प S 
यह आपने ठाट का जन्य राग हैं अर्थात यह आश्रय राग हैं  शूद्र और चंचल प्रकृति का राग होने क कारण इसमें छोटे ख्याल, भजन, ठुमरी , होली गायन आदि अति प्रिये लगते हैं भजन और होली गायन के लिए इसे उपुक्त राग माना जाता हैं वैसे तो इस राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना जाता हैं परन्तु इसे सर्वकालिक राग मान कर किसी भी समय गा बजा लिया जाता हैं 
इसके सम्वादी स्वर में भी मतभेद पाया जाता हैं कुछ विद्वान इसको रे मानते हैं तो कुछ इसको सा मानते हैं दक्षिण भारत में इसे खरहर प्रिया नामक मेल के नाम से जान जाता हैं