राग - बिहाग
थाट -बिलावल
जाति - औडव - सम्पूर्ण
वादी - ग
सम्वादी - नि
स्वर - सभी शुद्ध
वर्जित स्वर - आरोह में रे ध
न्यास क स्वर - सा ग प नि
गायन समय - रात्रि का दूसरा प्रहर
आरोह - सा ग, म प, नि सां
अवरोह - सां , नि ध प , म ग ,रे सा
पकड़ - नि सा, ग म प , ग म ग ,रे सा
यह थाट बिलावल से उत्पन्न राग है कुछ गायक वादक इसे अवरोह में तीव्र म का प्रयोग करते हैं परंतु इसके अलावा कभी-कभी तीव्र म का प्रयोग नहीं किया जाता है अवरोह में म का प्रयोग ऐसे विवादी स्वर की भांति किया जाता है जो राग का सौंदर्य बढ़ाता है आजकल जो संगीतज्ञ इस राग में म तीव्र करके गाते हैं वे इसका थाट , कल्याण थाट को मानते हैं यदि इस राग में कोमल नि का प्रयोग किया जाता तो राग विहागड़ा का निर्माण होगा राज बिहाग का विस्तार मंद्र और मध्य सप्तक में अधिक पाया जाता है इस राग में नि का खुला प्रयोग किया जाता है यह गंभीर प्रकृति का है इस राग में बड़े व छोटे ख्याल गते,तराने और ध्रुवपद गाए व बजाए जाती हैं
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