तान शब्द संस्कृत के मूल धातु "तन" से लिया गया है जिसका अर्थ हुआ खींचना या तानना |
अन्य शब्दों में कहे तो कंठ को तान कर गाने की प्रक्रिया, जिसमे स्वरों के समूह को खींच कर प्रस्तुत किया जाता है
एक प्रकार से हम यह भी कह सकते हैं राग में लगने वाले स्वर समूहों को विभिन्न ढंग से प्रस्तुत करते हुए राग विस्तार करने को तान कहते हैं
तानो के अलग अलग प्रकारो हमे कई प्रकार देखने को मिलते है जिनमे से एक प्रकार है
तानो के अलग अलग प्रकारो हमे कई प्रकार देखने को मिलते है जिनमे से एक प्रकार है
वर्तमान में दो प्रकार की तानों का प्रयोग अधिक किया जाता है
1. बोलतान
2. स्वरतान
तानो के कुछ स्वरूप इस प्रकार हैैै
शुद्ध तान के अंतर्गत सरल एवं रागांग तान आते है इन्हें सरल एवं स्पाट तान भी कहते हैं इनमे रागोचित स्वरों का क्रमबद्ध आरोह- अवरोह किया जाता है सरल तानो के प्रकार एक प्रकार सट्टे की तानो का भी एक प्रकार होता है | जो केवल अवरोही क्रम में ही प्रयोग होता है | जैसे :- प म ग रे सा ,स नि ध प, म ग रे सा |
संगीतज्ञों द्वारा इसका प्रयोग अधिकतर ख्याल गायकी में तान मुखड़ा व् सम को मनोरंजक बनाने के लिए किया जाता है
कूटतान
इस प्रकार की तानो में तानो की सरलता व क्रम देखने को नहीं मिलता है | बल्कि इसमें स्वरों का फेर बदल दिखाई देता है इनमें शुद्ध और वक्र तानो का मिश्रण रहता है। जैसे ग,म, ध, म,ध, म l
फिरत तान
इसमें अलग - अलग स्वरों के छोटे-छोटे समूह बने होते है ऐसा कहा जाता है की तान प्रक्रिया का क्षेत्र मध्य सप्तक ही रहता है परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है के मन्द्र और तार सप्तक में तान प्रक्रिया नहीं होती l इसका एक कारण यह कह सकते है कंठ क्षेत्र की दृष्टि से मध्य सप्तक का अधिक प्रयोग किया जाता है यह तान चक्र के समान घूमते हुए प्रतीत होती है
इसमें अलग - अलग स्वरों के छोटे-छोटे समूह बने होते है ऐसा कहा जाता है की तान प्रक्रिया का क्षेत्र मध्य सप्तक ही रहता है परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है के मन्द्र और तार सप्तक में तान प्रक्रिया नहीं होती l इसका एक कारण यह कह सकते है कंठ क्षेत्र की दृष्टि से मध्य सप्तक का अधिक प्रयोग किया जाता है यह तान चक्र के समान घूमते हुए प्रतीत होती है
वक्र तान
सरल अलंकारिक हो या वक्र अलंकारिक हो इसकी रचना गायक के गायन-वादन की कल्पना पर निर्भर करता है ऐसी ताने मनोरंजक होती है जैसे - सा रे ग ,रे ग म , ग म प
इन्हे आरोही और अवरोही दोनों क्रम में गाया जाता है
छूट तान
सरल अलंकारिक हो या वक्र अलंकारिक हो इसकी रचना गायक के गायन-वादन की कल्पना पर निर्भर करता है ऐसी ताने मनोरंजक होती है जैसे - सा रे ग ,रे ग म , ग म प
इन्हे आरोही और अवरोही दोनों क्रम में गाया जाता है
छूट तान
जब तार सप्तक से मध्य सप्तक पर स्वरों को छोड़ते हुए जल्दी से आते है तो उसे छूट तान कहते हैं
अलंकारिक तान
जब शब्दों में अलंकारों का प्रयोग किया जाता है तो उसे अलंकारिक तान कहा जाता है
जबड़े की तान
जब स्वरों का गायन जबड़े की सहायता द्वारा किया जाता है तो उसे जबड़े की तान कहा जाता है
दानेदार तान
दानेदार तान का प्रत्येक स्वर स्पष्ट रूप से सुनाई देता है। कुछ विद्वान इसे कण युक्त तान भी कहते
गमक तान
गमक तान में स्वरों का प्रयोग स्वरों को हिलाते हुए किया जाता है
गडकरी की तान
इस तान की विशेषता यह है कि इसमें स्वरों को एक के पीछे एक तेजी से लगाया जाता है जैसे-जैसे सा रे ,सा रे ,नि सा , नि सा !
अचरक की तान
अचरक की तान के विशेषता यह है कि इसमें प्रत्येक स्वर तेजी से दो दो बार गाया जाता है
हलक की तान
इस तान में स्वरों को जीभ और गले की सहायता से स्वरो का उच्चारण किया जाता है
झटके की तान
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है झटके की तान में स्वरों को झटके के साथ प्रयोग किया जाता है जैसे दुगुन में गाते हुए अचानक स्वरों की गति को बढ़ाकर तिगुन या चौगुन में स्वरों को झटके के साथ तान को गाना।
लड़ंत तान
जब संपूर्ण तान में दो या तीन स्वरों का ही प्रयोग बार-बार किया जाता है तब वह लड़ंत तान कहलाती है
इन कुछ स्थानों के अलावा भी कई तान है जो संगीत में प्रयोग की जाती है गायन की सुंदरता बढ़ाने के लिए ही तानो का प्रयोग किया जाता है इनमें कुछ ताने ऐसी होती है जो केवल गायन के साथ प्रयोग की जाती है और कुछ ताने ऐसी भी होती है जो केवल वादन के साथ प्रयोग की जाती है और कुछ ऐसी होती है जो दोनों परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है परंतु इन तानों का उद्देश्य गायन और वादन की सुंदरता को बढ़ाना ही होता है