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राग - शुद्ध कल्याण

            

राग -  शुद्ध कल्याण
थाट - कल्याण
जाति - औडव - संपूर्ण
वादी - ग
संवादी -ध
स्वर - म ( तीव्र ) शेष शुद्ध
वर्जित स्वर - म नि (आरोह में)
गायन समय - रात्रि का प्रथम प्रहर
सम प्राकृतिक राग - यमन, देशकार ,भूपाली
आरोह- सा रे ग प ध नि सां
अवरोह - सां नि ध प म(तीव्र) ग रे सा
पकड़ - ग ,रे सा, नि ध प सा, ग रे प रे, सा
यह गंभीर प्रकृति का राग है इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में अधिक होता है ऐसा माना जाता है कि शुद्ध कल्याण की उत्पत्ति भूपाली और कल्याण रागो के मेल से हुई है इसीलिए कई लोग इसे भूप कल्याण कहकर भी पुकारते हैं इस राग में रे और प स्वर संगति देखने को मिलती है जो राग को विशेष रंजकता प्रदान करती है राग के आरोह में म और नि स्वरों को वर्जित किया जाता है परन्तु अवरोह में भी इनका प्रयोग अल्प ही रहता है क्योकि  अवरोह में अक्सर प से ग पर आते हुए म (तीव्र) को मींड की सहायता से ही लिया जाता  है इसके साथ नि का प्रयोग भी इस कारण से कम ही किया जाता है क्योंकि इससे राग कल्याण की छाया आने की आशंका रहती है तान प्रस्तुत करते हुए तो म स्वर को पूर्णतः छोड़ ही दिया जाता है जबकि नि स्वर का प्रयोग अवरोह में कुछ गायको द्वारा देखा जा सकता है ऐसा राग को भूपाली से भिन्न दिखने में सहायता होता है