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राग - देस


राग - देस 
थाट - खमाज
जाति - औडव -सम्पूर्ण
स्वर - दोनों नि शेष शुद्ध
वर्जित स्वर - आरोह में ग ध
गायन समय - रात्रि का दूसरा प्रहर
न्यास के स्वर -सा, रे, प 
सम प्रकृतिक राग - तिलक कामोद
आरोह - सा रे  म  प नि सां
अवरोह - सां नि ध प, म ग रे ग सा 
पकड़ - रे, म प, नि ध प , प ध प म , म रे ग सा

राग देस पूर्वांग प्रधान चंचल प्रकृति का राग है इसमें अधिकतर ठुमरिया ,गीत, ग़ज़ल, भजन व् छोटे ख्याल गए जाते है इस राग में रे स्वर पर बार बार ठहराव तथा इसका वक्र प्रयोग देखने को मिलता है आरोह में प स्वर का अलप प्रयोग किया जाता है इसके वादी तथा सम्वादी स्वर को लेकर कुछ मतभेद देखने को मिलता है कुछ लोग इस राग के वादी 'रे' सम्वादी 'प' को न मानकर प स्वर को वादी और रे स्वर को सम्वादी मानते है परन्तु यह उचित नहीं है  क्योकि यह राग पूर्वांग वादी है  और इस राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर है जो की दिन के पूर्व अंग में आता है इसीलिए वादी स्वर पूर्वांग में और सम्वादी उत्तरांग कहना ही ठीक है  इस राग में रे s म ग रे स्वर समूह बार बार लिया जाता है अवरोह में सां से प को मींड द्वारा लिया जाता है कभी कभी कुछ कुशल गायको द्वारा दोनों नि का प्रयोग करते हुए भी देखने को मिलता है