राग - भैरवी
थाट- भैरवी
जाति - सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
वादी - म
सम्पूर्ण - सा
स्वर - रे ग ध नि कोमल शेष शुद्ध
गायन समय - प्रातः काल
सम प्रकृतिक राग - बिलासखानी तोड़ी
यह अपने थाट का आश्रय राग है इस राग के संबंध में यह कहा जाता है की इसका गायन समय प्रातः काल होने पर भी आजकल गायक इस अपनी इच्छा अनुसार किसी भी समय गाते बजाते है यह पूर्वांग वादी राग है परन्तु कुछ गायक इसका वादी स्वर म के स्थान पर प मानते है इस सिथति में यह राग उत्तरांग वादी हो जाता है
अधिकतर कुशल गायक इस राग को गाते हुए राग की सुंदरता बढ़ने के लिए अन्य स्वरों को भी विवादी स्वरों के रूप में प्रयोग कर लिया करते है कुछ लोग इसे गंभीर प्रकृतिक का राग मानते है परन्तु यह राग चंचल प्रकृति का राग है क्योकि इसमें सभी 12 स्वरों को प्रयोग कर लिया जाता है और सभी 12 स्वरों का कुशल प्रयोग इस राग की चंचल प्रकृति को दर्शाता है चंचल प्रकृति के रागो में शृंगारिक रस की अधिकता होती है इस राग में तराने, ठुमरी ,टप्पा ,गजल, भजन आदि अधिक देखने को मिलते है इस राग में अधिकतर मसीतखानी गते बजाई जाती है फ़िल्मी संगीत में भी अधितर इसी राग का प्रयोग देखा जा सकता है यह भी माना जाता है की प्रत्येक संगीत की सभा का समापन इस राग के द्वारा ही देखने को मिलता है