राग वृंदावनी सारंग


राग - वृंदावनी सारंग

राग - काफी
जाति - औडव-औडव 
वादी - रे
संवादी - प
स्वर - दोनों नि
वर्जित स्वर - ग ध
न्यास के स्वर - रे प सा
समय - दिन का दूसरा प्रहर
सम प्राकृतिक राग - सूर मल्हार, मेघ मल्हार
आरोह - नि सा, रे म प, नि सा
अवरोह - सां नि प, म रे, सा
पकड़ - नि सा रे म रे प म रे सा
           राग वृंदावनी सारंग बहुत ही मधुर और लोकप्रिय राग है इसे केवल सारंग के नाम से भी जाना जाता है इस राग में रे स्वर का बहुत्व मिलता है अर्थात इस स्वर पर अधिक न्यास किया जाता है इसका गायन करते समय आरोह में शुद्ध नि तथा अवरोह में कोमल नि का प्रयोग किया जाता है सारंग के अनेक प्रकार पाए जाते हैं जैसे लंका दहन सारंग, मियां की सारंग, शुद्ध सारंग, मधुमाद सारंग आदि इसके कई प्रकार प्रचलित हैं इसके सभी प्रकारों में रे स्वर का बहुत्व देखने को मिलता है

0 comments:

Post a Comment