उत्तरी और दक्षिणी ताल प्रणाली रचना, समानता और भिन्नता

               
                  भारतीय संगीत में ताल प्रणाली 
प्राचीन काल में संपूर्ण भारत में संगीत के केवल एक ही पद्धति थी किंतु आज हम देखते हैं कि संगीत की दो पद्धतियां हो गई है कुछ विद्वानों का मत है कि उत्तरी संगीत पर अरब और फारसी संगीत का प्रभाव पड़ा जिससे उत्तरी संगीत- दक्षिणी संगीत से अलग हो गया , उनका कहना है कि 11वीं शताब्दी में भारत में मुसलमानों का आना शुरू हो हुआ और धीरे-धीरे वे उत्तर भारत के शासक हो गए अतः उनकी सभ्यता और संगीत की भारत के संगीत पर अमिट छाप डाली l दक्षिण भारतीय संगीत पर कोई बाहरी प्रभाव न पड़ा, अतः वहां का संगीत अपरिवर्तित रहा इस तरह हम देखते हैं कि उत्तर और दक्षिण इन दोनों संगीत पद्धतियों का मूलाधार एक ही है नीचे दोनों पद्धतियों का तुलनात्मक विवेचन किया जा रहा है
                           समानता 
1. दोनों संगीत पद्धतियों में 12 स्वर प्रयोग किए जाते हैं इनके स्वर स्थान भी लगभग समान ही है
2. जिस प्रकार यहां थाट राग वर्गीकरण की मान्यता है उसी प्रकार दक्षिण भारत तथा कर्नाटक में भी मेल थाट- राग वर्गीकरण सर्वमान्य है मेल अर्थात थाट एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं थाट के समान मेल से भी राग  उत्पन्न माने जाते हैं
3. दोनों संगीत पद्धतियों में स्वर के साथ-साथ लय और ताल का महत्वपूर्ण स्थान है
4.  दोनों पद्धतियों के कुछ ताल भी समान है 
5. जिस प्रकार उत्तरी भारतीय संगीत में ताल देते समय विभाग की प्रथम मात्रा पर ताली अथवा खाली दी जाती है उसी प्रकार कर्नाटक संगीत में भी विभाग के प्रथम मात्रा पर ताली दी जाती है
6. दोनों पद्धतियों के कुछ राग स्वर की दृष्टि से समान है जैसे मालकौस , हिंदोलम, दुर्गा, शुद्ध सावेरी, मध्यमाद सारंग,  बिलावल, धीर संकराभरण, काफी- हरप्रिया ,भैरवी- हनुमत तोड़ी। कुछ राग नाम की दृष्टि से भी समान है किंतु स्वर की दृष्टि से नहीं जैसे श्री , सोहनी, केदार, हिंडोल आदि दूसरे शब्दों में यह नाम दोनों पद्धतियों में पाए जाते हैं  धनाश्री ,श्रीरंजनी आदि दोनों पद्धतियों में पाए जाने जाते हैं किंतु दोनों पद्धतियों में इसके स्वर भिन्न है
7. हमारे भजन, ख्याल, तराना और ठुमरी कर्नाटक के क्रमशः कीर्तनम, वर्णम,  तिल्लाना और जावली से बहुत अधिक मिलते हैं 
 8. दोनों पद्धतियों में गायक की अपनी कल्पना से गाने की पूरी स्वतंत्रता रहती है किंतु आचार - विचार का अंतर होने के कारण कल्पना करने का ढंग अलग होता है

                               भिन्नता

यद्यपि दोनों पद्धतियों में 12 स्वर होते हैं फिर भी कुछ स्वरों के नाम भिन्न है 
1. हमारा कोमल  रे और कोमल ध उनका शुद्ध रे और ध, हमारा शुद्ध रे और उनका चतुर श्रुति रे और ध, हमारा तीव्र म को प्रति म ,कोमल नि को षट श्रुति या पंच श्रुति रे कहते हैं तथा शुद्ध नि कों काकली निषाद कहते हैं सा,म,प के स्थान दोनों के समान है
2. उत्तर भारत में 10 व कर्नाटक में 19 थाट है
3. हिंदुस्तानी पद्धति में ताल देने के लिए तबला और कर्नाटक में मृदंगम होते हैं 
4. वहां की बंदिश की मौलिकता पर विशेष ध्यान दिया जाता है कोई भी गायक किसी बंदिश में परिवर्तन नहीं लाता किंतु उत्तरी भारत में कठोर बंधन नहीं है प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार गीत की बंदिश में परिवर्तन कर लेता है
5.  कर्नाटक में स्वर की कंपन और चंचलता पर व हिंदुस्तानी संगीत में स्वर की स्थिरता और गंभीरता पर विशेष बल दिया जाता है
6. कर्नाटक संगीत में यह प्राचीन नियम है कि गायक गाने के बीच मृदंग बजाने वाले को अपनी कला साधना दिखाने का अवसर देता है और वह थोड़ा समय तक शांत हो जाता है किंतु हिंदुस्तानी संगीत में ऐसा नहीं होता यहां तबला संगीत का यह अभिप्राय समझा जाता है कि संगीत से गायन अधिक सुंदर हो तबलियो को कला परिचय देने के लिए बिल्कुल अलग समय दे दिया जाता है जिन्हें स्वतंत्र वादन कहते हैं
7. कर्नाटक पद्धति में तालो के बोल नहीं होते । बोलो के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है जितने चिन्ह होते हैं उतने ही विभाग होते हैं जबकि हिंदुस्तानी पद्धति में तालो के बोल होते हैं प्रत्येक विभाग की मात्राएं निर्धारित की गई है इसमें सम ,खाली और ताली के चिन्ह होते हैं
8.  इसमें इसमें खाली के स्थान में विसर्जन का प्रयोग किया जाता है इसके तीन प्रकार होते हैं पताकम, कृतम  व सर्पीनी: जबकि हिंदुस्तानी ताल पद्धति में खाली के स्थान पर खाली का ही प्रयोग किया जाता है खाली का कोई प्रकार नहीं होता
 9. कर्नाटक ताल पद्धति में ताल को प्रथम मात्रा पर जो आघात किया जाता है उसे घात कहते हैं हिंदुस्तानी ताल पद्धति में ताल की प्रथम मात्रा पर जो आघात किया जाता है
 उसे सम कहते हैं
10. कर्नाटक की ताल में जाति भेद से एक ही ताल की अनेक मात्राएं होती हैं जैसे ध्रुवताल की चतस्त्र जाति में 14 , त्रिस्त में 11, मिश्र जाति में 23 , खंड जाति में 17 तथा संकीर्ण में 29 मात्राएं होती है जबकि इसके प्रत्येक ताल में मात्राएं निर्धारित होती हैं उनकी मात्राएं किसी भी दशा में कम या अधिक नहीं होती जैसे झपताल में 10, तीनताल में 16 , एकताल में 12 मात्राएं होती है
11. कर्नाटक के तारों की संख्या सीमित है उसमें केवल सात ताल जबकि इस में  संख्या अत्यधिक होती है नए-नए तालो के निर्माण से संख्या असीमित है
12. कर्नाटक की तालो और हिंदुस्तानी तालो की मात्राओं में भी कई स्थानों पर अंतर है जैसे कर्नाटक की एक ताल 4 मात्रा की होती है तो हिंदुस्तानी 12 मात्रा की होती है


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