राग - चंद्रकौंस
थाट - भैरवी
जाती - औडव - औडव
वादी - म
सम्वादी - सा
स्वर - ग ध शेष शुद्ध
वर्जित स्वर - रे प
न्यास के स्वर - म सा नि
समय - रात्रि का तीसरा प्रहर
सम प्रकृतिक राग - मालकोंस
आरोह - स ग म ध नि सां
अवरोह - सां नि ध, म, ग म ग सा
पकड़ - ग म ग सा, नि, सा
यह गंभीर प्रकृति का राग हैं क्योकियह वातावरण पर तनावपूर्ण प्रभाव डालता हैं यह उत्तरांग प्रधान राग हैं यह मध्य सप्तक और तार सप्तक में अधिक खिलता हैं इसके थाट के संबंध में लोगो में मतभेद पाया जाता हैं कुछ लोग इसका थाट काफी बताते हैं इसमें नि स्वर की बहुत प्रधानता हैं शुद्ध नि की प्रबलता का यही गुण इसे मालकोंस से अलग करता हैं मलकोंस में कोमल नि को शुद्ध करने से ही इस राग की उतपत्ति हुई हैं नि की प्रबलता के कारण तानपुरे में भी मध्यम के स्थान पर नि ही मिला लिया जाता हैं
इस राग में ग को छोड़ कर बाकि सभी स्वरों पर न्यास किया जा सकता हैं चंद्रकौंस की तुलना में मालकोंस में मींड अधिक ली जाती हैं
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