राग बिलवाल


राग - बिलावल 
थाट - बिलावल 
जाती - सम्पूर्ण - सम्पूर्ण 
वादी - ध 
सम्वादी - ग 
स्वर - सभी शुद्ध   
वर्जित स्वर - आरोह में म 
समय - दिन का प्रथम प्रहर 
सम प्रकृतिक राग  - अल्हैया  बिलावल 
आरोह  - सा ,ग रे ग, प ,ध ,नि ध नि सां 
अवरोह - सां नि ध, प,  ध नि ध प, म ग, म रे सा 
पकड़ - गा रे ग प ध नि सां
राग बिलवाल को बिलावल और शुद्ध बिलावल के नाम से भी जाना जाता हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं यह उत्तरांग प्रधान राग हैं इसे प्रातः काल का कल्याण कह कर भी पुकारा जाता हैं यदि इस राग में  म को वर्जित कर दे और स्वर नि ध का वक्र प्रयोग किया जाये तब यही राग अल्हैया बिलावल बन जायेगा | प्राचीन ग्रंथ बेलवली में भी इसका उल्लेख पाया जाता हैं इस राग में ध और म की संगति अति प्रिय लगती हैं 

राग काफी


 राग - काफी
थाट - काफी 
जाति - संपूर्ण-संपूर्ण 
वादी - प   
संवादी - रे 
स्वर  -  ग नि कोमल शेष शुद्ध
न्यास क स्वर - प, रे, सा   
समय - रात्रि का दूसरा प्रहर 
आरोह - सा रे म प ध नि सां 
अवरोह  - सां नि ध प म रे सा 
पकड़ - सा सा  रे रे म म प S 
यह आपने ठाट का जन्य राग हैं अर्थात यह आश्रय राग हैं  शूद्र और चंचल प्रकृति का राग होने क कारण इसमें छोटे ख्याल, भजन, ठुमरी , होली गायन आदि अति प्रिये लगते हैं भजन और होली गायन के लिए इसे उपुक्त राग माना जाता हैं वैसे तो इस राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर माना जाता हैं परन्तु इसे सर्वकालिक राग मान कर किसी भी समय गा बजा लिया जाता हैं 
इसके सम्वादी स्वर में भी मतभेद पाया जाता हैं कुछ विद्वान इसको रे मानते हैं तो कुछ इसको सा मानते हैं दक्षिण भारत में इसे खरहर प्रिया नामक मेल के नाम से जान जाता हैं 

राग मधुवंती



राग-मधुवंती 
थाट -तोड़ी 
जाति - ओड़व - सम्पूर्ण 
वादी - प 
सम्वादी - रे 
स्वर - ग कोमल और म तीव्र, शेष शुद्धा
वर्जित स्वर - आरोह में रे ध 
न्यास के स्वर - ग प 
समय - दिन का तीसरा प्रहर 
सम प्रकृतिक राग मुल्तानी 

मधुवंती राग बहुत प्राचीन राग नहीं हैं इसे आधुनिक रागो की श्रेणी में ही रक्खा जाता हैं कही कही इसे राग अम्बिका के  नाम से भी जाना जाता हैं l राग मुल्तानी और पटदीप इसके सम्प्रकृतिक राग हैं यदि मुल्तानी में रे ध को शुद्ध कर दिया जाता हैं तो राग मधुवंती का निर्माण होता हैं
  वैसे तो यह राग किसी थाट का नहीं माना जाता ,परन्तु क्योकि किसी न किसी ठाट में इसे रखना ही हैं इसलिए इसे तोड़ी ठाट क अंतर्गत रक्खा गया हैं परन्तु व्यंकट मुखी के 72 थाटों में इसे धर्मवती नामक थाट के नाम से जाना जाता हैं 



राग तोड़ी


राग - तोड़ी 
थाट - तोड़ी 
जाती - संपूर्ण- संपूर्ण 
वादी-
संवादी-
स्वर - रे   म (तीव्र )
न्यास  के स्वर -
समय - दिन का  दूसरा प्रहर
 सम प्राकृतिक राग- गुर्जरी तोड़ी
यह राग  उत्तरांग प्रधान राग है माना जाता  हैं की  इसकी रचना मिया तानसेन ने की थी इसलिए इसे मिया की तोड़ी के नाम से भी जाना जाता हैं इसके पूर्वांग में गंधार और उत्तरांग  ग  में धैवत पर न्यास किया जाता हैं तोड़ी राग में रे का प्रयोग अल्प होता हैं और ग का अधिक प्रयोग होता हैं यही गंभीर प्रकृति  का राग हैं और बहुत ही कठिन परन्तु मधुर राग हैं इसमें बड़े व् छोटे ख्याल दोनों ही शोभादेते हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होता है तोड़ी के  अनेक प्रकार पाए जाते हैं

राग मालकोंस



राग - मालकौंस
थाट - भैरवी 
जाती - औडव -औडव 
वादी -म 
संवादी -सा 
स्वर - ,, नि शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर - रे प 
न्यास के स्वर - सा, म 
समय - रात्रि का तीसरा प्रहर 
सम प्रकृतिक राग - चंद्रकौंस 
राग मधुवंती को एक पुरुष राग भी कहा जाता हैं इसकी प्रकृति गंभीर हैं 
 इसका चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होता हैं 
इसमें मींड ,कण खूब प्रयोग किये जाते हैं 
ध, म की संगति कौंस अंग मानी जाती हैं  इस राग का नि स्वर शुद्ध कर देने से यह राग चंद्रकौंस बन जाता हैं 




राग मुल्तानी




राग- मुल्तानी 
थाट  - तोड़ी 
जाति - ओड़व - सम्पूर्ण 
वादी -प 
सम्वादी - सा 
स्वर - रे ग ध म (तीव्र )
वर्जित - आरोह  में रे ध 
न्यास के स्वर - ग प नि सा 
समय - दिन का चौथा प्रहर 
सम्प्रकृतिक राग - तोड़ी 

यह राग तोड़ी थाट का तो है परंतु फिर भी है इसकी प्रकृति तोड़ी से भिन्न है यह संधि प्रकाश और परमेल परिवेक राग है यह गंभीर प्रकृतिक का राग हैं इसके आलाप तान प्रायः मंद्र नि से शुरू किये जाते हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में सामान रूप से किया जा सकता हैं   यदि राग में रे ध स्वरों को शुद्ध कर दिया जाए तो यह राग  मधुवंती जाएगा |जब राग में मन्द्र नि  से मध्य ग पर जाते हैं तो म को स्पर्श कर के मींड की सहायता से ग पर जाते हैं तीव्र म से ग पर जाना इस राग की ख़ास विशिष्ट हैं 



राग जयजयवंती

                 

 राग - जयजयवंती 
थाट - खमाज 
जाती - सम्पूर्ण सम्पूर्ण 
वादी - रे 
सम्वादी - प 
स्वर - दोनों ग, नि शेष शुद्ध
समय - रात्रि का प्रथम प्रहर    
न्यास के स्वर - सा रे प 
सम प्रकृतिक राग - देस 
आरोह - सा ध नि  रे, रे ग म प, नि सां 
अवरोह - सां नि --ध प म ग रे , रे रे सा 
पकड़ - रे रे सा ,नि सा ध नि रे 
यह गंभीर प्रकृति का राग हैं यह परमेल प्रवेशक राग हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में किया जाता हैं इस राग में
दोनों ग तथा नि प्रयोग किये जाते हैं | रे  रे स्वर समूह में दोनों रे क मध्य हमेशा ग कोमल ही आएगा और ध नि रे सा स्वर समूह के सतह हमेशा कोमल नि ही आयेगा  आरोह में प के साथ शुद्ध नि का प्रयोग होगा 
यह राग  दो  अंगो  में  गया  जाता  हैं एक देश अंग और दूसरा बागेश्री अंग | परंतु जयजयवंती  में कोई स्वर वर्जित नहीं होता | प्राचीन शाश्त्रो में इसे द्विजवंती के नाम से भी जाना जाता हैं 

राग मारवा


राग - मारवा 
थाट - मारवा 
जाति - षाड़व षाड़व 
वादी - रे 
सम्वादी- ध 
स्वर - रे ,म (तीव्र )शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर - प 
न्यास के स्वर - रे ,ध 

गायन समय -दिन का दूसरा प्रहर 

 मरवा अपने थाट का आश्रय राग हैं  यह पूर्वांग प्रधान राग हैं यह सयकालीन राग हैं इसका चलन मंद्र और मध्य सप्तक में अधिक होता हैं  राग में कई बार अवरोह में सा का लंघन किया जाता हैं मरवा राग में रे को वक्रत्व अत्यंत सुंदर लगता हैं इसकी प्रकृति गंभीर होने क कारणइसमे मींड खटका मुरकी गमक आदि का खूब प्रयोग होता हैं यह राग सुनने में वैराग्य भाव का अनुभव कराता हैं  


राग बागेश्वरी



थाट - काफी      
जाति- ओड़व - सम्पूर्ण 
वादी- म 
सम्वादी- सा
 स्वर - ,नि कोमल शेष शुद्ध 
वर्जित स्वर -आरोह में रे प 
समय - रात्रि  का दूसरा प्रहर 


यह एक गंभीर प्रकृति का राग है मधुर एक मधुर और कर्णप्रिय राग होने के कारण उप शास्त्रीय संगीत शैली में और सुगम संगीत में इसकी अनेक बंदिशें देखने को मिलती है बागेश्वरी में धनश्री और कान्हड़ा का योग माना जाता हैं इस राग की जाति के विषय में विद्वानों में मतभेद पाया जाता हैं इसका चलन तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है। ग्रंथों में इसका सम प्राकृतिक राग श्रीरंजनी को बताया जाता है। 



राग -भीमपलासी


राग -भीमपलासी
थाट - काफी 
जाति - ओड़व - संपूर्ण
वादी- म 
संवादी - सा 
स्वर- ग नि 
वर्जित स्वर -आरोह में रे ध 
समय - दिन का तीसरा प्रहर 
प्राकृतिक राग - बागेश्री 
आरोह - नि सा म प नि सां
अवरोह - सां नि ध प, म प , म ग, रे सा
 पकड़ -नि सा म ,म प  , म , ,रे सा

   यह बहुत ही मधुर और लोकप्रिय राग है यह दो रागों भीम + प्लासी के मिश्रण से बना है  यह  गंभीर प्रकृति का राग है इसका चलन तीनों सप्तको में है परंतु मंद्र सप्तक में अधिक खिलता है यह पूर्वांग प्रधान राग है  इसमें  ध्रुपद धमार खयाल तराने आदि रचनाएं  गाई जाती है जो भक्ति और श्रंगार रस से परिपूर्ण होती  है इसमें स म प नि स्वरों स्वरूप का वैचित्र्य उत्पन्न करता है राग में सा म और प ग की संगति  देखने को मिलती है