स्वर



साधारण रूप में कहा जाये तो  हम जो आवाजे अपने  आस पास सुनते  है वह विभिन्न प्रकार की ध्वनि ही है  
परन्तु संगीत में ध्वनि से अभिप्राय उस ध्वनि से है जो हमारे कानो को सुनने मेंजो मधुर व कर्णप्रिय हो जिससे सुनने से हमारे कानो को अच्छा अनुभव हो
दैनिक जीवन में हम अनेक आवाजे सुनते है जानवरो पक्षियों की आवाजे  बच्चो के हसनी या रोनी की आवाजे ,किसी के  चिल्लाने की आवाजे तथा किसी के गाने  की आवाजे | ये सभी ध्वनिया ही तो है
 , परन्तु अलग अलग रूप में विद्धमान है . हम इन सभी ध्वनियों को संगीत तो  नहीं कह सकते क्योकि संगीत में तो वही ध्वनि उपयोगी है जो मधुर हो . ध्वनि की उतपत्ति आघात के कारण होतीं है
 जब किसी वस्तु पर किसी अन्य वस्तु या साधन क द्वारा आघात किया जाता है तो उनके  टकराव द्वारा कुछ तरंगे (विब्रेशन्स) उत्तपन होतीं है जिनसे ध्वनि उत्तपन होती है इन ध्वनि तरंगो को हम संगीत में आंदोलन भी कहते  है ,                   स्वरा
 स्वर वह ध्वनि है जिसकी एक नियमित आंदोलन संख्या है पतंजलि ऋषि ने भी स्वर के विषय में कहा है कि 
                                "स्वम्  राजन्ते इति स्वरा "
अर्थात 'स्वर 'वह है जो स्वय  विराजित होते है  स्वर के विषय में यह  भी कह सकते  है कि जब ध्वनि के निश्चितः आंदोलन के साथ उतपन्न होतीं है तो यह एक स्वर के  रूप में उत्पन होतीं है |
परन्तु यदि यही ध्वनि के अनिश्चित व अनियमित रूप[ में होतीं है तो यही शोर का रूप ले लेती है इन ध्वनि तरंगो से असंख्य नाद उत्पन होते है  संगीत में 12 स्वर होते  है ,जिनमे से 7 शुद्ध व 5  विकृत स्वर होते  है 
इन सात शुद्ध स्वरों के बीच 22 श्रुतिया विद्धमान  होतीं है , इन 22 श्रुतियो क बीच असंख्य नाद होते  है , इन 22  श्रुतियो में से जो श्रुतिया एकदम साफ़ साफ़ पहचानी जा सकती ह उन पर स्वरों कि स्थापना  की गयी है |
स्वरों के बीच में  यह श्रुतिया एक निश्चित अंतराल के बाद स्थापित होतीं है | जिन श्रुतियो में मधुरता  और ठहराव होता हे वही स्वर कहलाती है|

  
                                                                                                           स्वर
                                                                 शुद्ध ----------------------------|-----------------------विकृत
                                                              (सा , पा)                                                     |----------|----------|
                                                                                                                                 कोमल            तीव्र      
                                                                                                                          (रे,ग,ध,नि)               (म)

संगीत में हम इन सात स्वरों को इन नामो से जानते  है|
सा -षडज
रे -ऋषभ
गा-गंधार
म- मध्यम
पा -पंचम
ध-धजिन श्रुतियो में मधुरता  और ठहराव होता हे वही स्वर कहलाती है|
                                     स्वर
शुद्ध ----------------------------|-----------------------विकृत
 (सा , पा)                                                   |----------|----------|
                                                         कोमल                         तीव्र              
                                                       (रे,ग,ध,नि)                     (म)

संगीत में हम इन सात स्वरों को इन नामो से जानते  है|
सा -षडज
रे -ऋषभ
गा-गंधार
म- मध्यम
पा -पंचम
ध -धैवत 
नि-निषाद

 

नाद



ध्वनि के उत्पन्न होनी की प्रक्रिया में वायु दबाव के कारण या वायु प्रवाह क द्वारा एक कम्पन अर्थात आंदोलन उत्पन्न होता है यही पर  नाद की उत्पत्ती होती है
जब ध्वनि उत्पन्न होती है तो यह आंदोलन संख्या कभी नियमित रूप से सिथिर तो कभी अनियमित रूप से अनिश्चित व अस्थिर  होती है
परन्तु संगीत उपयोगी नाद वही होता है जो ध्वनि सुनने में मधुर तथा संगीत उपयोगी हो
जिस ध्वनि की संख्या सिथिर नहीं होती वह ध्वनि संगीत उपयोगी नाद नहीं कहलाती |
नाद ध्वनि के  अंदर एक निश्चित समय में   एक मात्रा से दूसरी मात्रा के  बीच के अंतर में  ही स्थापित होता है ये  एक मात्रा से दूसरी मात्रा के बीच के समय को नाद का काल कहा जाता है

 नाद क दो भेद है
1. आहत नाद
2. अनाहत नाद
 आहत नाद
              आहत नाद से अभिप्राय उस नाद से हे जब नाद किसी प्रकार क घर्षण या टकराव द्वारा या फिर किसी
वस्तु में वायु के  प्रवाह से उतपन्न हो |
जैसे  की हारमोनियम में वायु भरकर स्वरों  के बजाने के  माध्यम से जब वायु को निकला जाता है और तबले पर हथेली व उंगलियों के माध्यम से प्रहार किया जाता है तो जो ध्वनि उतपन्न होती है वह आहात नाद के कारण ही उत्पन्न होती है
अनाहत नाद
                 यह वह नाद है जिसका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं होता यह अपने  आप अर्थात स्वयं ही बिना किसी संघर्ष के ही उत्पन्न  होता है  यह नाद केवल अनुभव ही किया जा सकता है|
 इसका प्रयोग ऋषि मुनियो व योगी पुरुषो क द्वारा  किया जाता है यह नाद मोक्ष  प्राप्ति के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है , यह वह नाद ह जो हमारे अंदर ही विधमान है  हम जानबूझ करइसे उत्तपन्न नहीं करते
 जैसे यदि हम हाथो द्वारा अपने   कानो को बंद कर ले तो हमे एक हल्की सी ध्वनि लगातार सुनाई देती है ये ध्वनि ये ध्वनि न तो कम होती ह न ही बढ़ती है और न ही कभी बंद होती है यह हर समय उपस्थित रहती है
 यही मनुष्य  के आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित होती है , इसका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं होता है | इसी को हम अनाहत नाद कहते  है  
  ध्वनि के आधार पर नाद के तीन भेद है
1  नाद का उचा-नीचपन अर्थात तारता
2 नाद का  छोटा-बड़ापन  अर्थात तीव्रता
3  गुण व जाती
1  नाद का उचा-नीचपन
                                इसे तारता (Pitch )भी कहते है जब नाद उत्पन्न होते है तोएक नाद की कम्पन की संख्या दूसरे नाद की कंपन(vibration) की संख्या से अलग होती है जसे सा से ऊँचा रे , व रे से ऊँचा गए ,
                                इन स्वरों में यह  अंतर नाद की कंपन संख्या में जो अंतर् है उसी के कारण ही  होता है सतो  स्वरों की ध्वनियों में अंतर् नाद की इसी विशेषता पर निर्भर करती है
2  नाद का छोटा-बड़ापन :-
                                   नाद की इस विशेषता को हम नाद की प्रबलता या तीव्रता की नाम से  भी जानते  है
जब हम किसी वस्तु पर आघात  करे या किसी वाद्य की तारो को छेड़े तो एक ध्वनि या आवाज  की उत्पत्ति होती है  यदि हम यह कार्य जोर लगा कर करते  है
 तो यह आवाज तेज व अधिक देर तक सुनाई देती है | इसके विपरीत यदि हम यह कार्य हल्के से करते है
 तो यह आवाज पहली की स्थिति में कम उत्पन्न होगी  और कम समय के लिए सुनाई देगी |  यह नाद क छोटे-बड़ेपन के ही कारण होता है  
                                                  
नाद का गुण :-
                   नाद  के गुण से अभिप्राय है की जब हम कोई ध्वनि सुनते है तो हम तुरंत पहचान जाते है कि ये सम्बन्धित व्यकित या वाद्य की आवाज है |यह नाद कि कारण ही होता है  नाद की यह तुरंत पहचने जाने वाली विशेषता ही नाद का गुण कहलाती है
                  

थाट



 

थाट की रचना सात स्वरों के माध्यम से रागो की उत्पत्ती के लिए की गयी थी,थाट को मेल भी कहा जाता है
हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में पंडित विष्णु नारायण भारतखण्डे जी ने ऐसी 10 थाटो को बताया है इन दस
थाटो के माध्यम से अनेक रंजक रागो की रचना की जा सकती है
ये 10 थाट निम्नलिखित है
बिलावल:-
              इस थाट में सभी स्वर शुद्ध होते है (सा रे ग म प ध नि )
 
कल्याण थाट:-
              इस में सभी स्वर शुद्ध होते है परन्तु म तीव्र (म ) होता है

खमाज थाट:-
              इस थाट में ( नि ) कोमल होता है और बाकी सब स्वर शुद्ध होते है

भैरव थाट:-
              इस थाट में (रे ) कोमल स्वर लिए जाते है और बाकि स्वर शुद्ध होते है

मरवा थाट:-                                        
              इस थाट में (रे )कोमल तथा (म )तीव्र  होते है और बाकि स्वर शुद्ध होते है

काफी थाट:-
              इस थाट में ( , नि )कोमल स्वर होते है और अन्य शुद्ध स्वर होते है

भैरवी थाट:-
              इसमें (रे , , , नि ) स्वर कोमल होते है और न्यू शुद्ध स्वर होते है

पूर्वी थाट:-
              इस थाट में (रे, )कोमल और (म )तीव्र होता है

तोड़ी थाट:-
              इस थाट में (रे )कोमल और (म )तीव्र होता है

आसावरी थाट:-
              इस थाट में (,,नि) स्वर कोमल होते है और अन्य स्वर शुद्ध होते है

श्रुति

 
भारतीय संगीत में श्रुति किसे कहते  हैं और श्रुति  का क्या अर्थ हैं  इस का ज्ञान एक संगीतज्ञ को होना बहुत आवश्यक हैं 
श्रुति वह संगीत उपयोगी नाद है जो एक दूसरे से अलग व स्पष्ट सुनी जा सके |
जैसा कि जानते है कि ध्वनि कि एक नियमित आंदोलन संख्या को हम नाद कहते  है , संगीत उपयोगी नाद से ही स्वर बनते है परन्तु हम सभी नादो को हम स्वर तो नहीं कह सकते क्योकि ध्वनि में उत्पन्न कंपन में एक मात्रा से दूसरी मात्रा तक असंख्य नाद उत्पन्न होती है
और यदि हम नाद को स्वर कि तो स्वरों की संख्या सात नहीं असंख्य हो जाएगी अतः इस समस्या क समाधान के लिए प्राचीन काल में संगीतज्ञों ने कुछ विशेष मुख्य नाद चुने  जिनकी संख्या 22 मानी गयी | वे नाद जो अपनी स्थान पर स्पष्ट और एक दूसरे से अलग सुनाई दे उनको श्रुति कहा गया  | और इनको कुछ विशेष एक दूसरे से अलग नाम दिए गए  आगे  इन 22  श्रुति  पर 12 स्वर स्थापित किये गए जो अपनी स्थान पर स्पष्ट सुनाई दे
प्राचीन ग्रंथकारो ने  इन शुद्ध स्वरों की स्थापना अंतिम श्रुति  पर  की थी  और इसी आधार पर एक सप्तक में 22  श्रुतियो में से  कुल 12  स्वर जिनमे सात शुद्ध और 5  कोमल स्वरों को लिया गया | परन्तु आधुनिक समय में इन शुद्ध स्वरों को प्रथम श्रुति पर मन जाने  लगा 

     संस्कृत शब्द 'श्रुति ' श्रु धातु से बना है जिसका अर्थ है सुन्ना | अर्थात श्रुति का अर्थ है  सुना हुआ 
श्रुति ही स्वर की जननी होती  है  श्रुति के द्वारा ही स्वर स्थान व सप्तक बनते है 
                  प्राचीन शास्त्रकरो ने 22  श्रुतियो में से सात श्रुतियो को जो एक दूसरे से कुछ अंतर पर स्थापित थी चुन लिया और उनको स्वरों का नाम दे दिया ,| इस प्रकार एक सप्तक में  प्रत्येक स्वर के मध्य  कुछ श्रुतियो को मना  गया
सा                   रे            ग        म                  प                  ध            नि 
  *    *   *   *   *   *   *   *   *   *   *   *    *   *   *   *   *    *   *   *   *                                                      1      2     3    4     1    2    3    1     2    1    2     3    4     1     2    3   4      1    2    3     1    2
                                           
                                           
`मध्य कालीन युग क ग्रंथकारो ने इन  22 श्रुतियो क आधार पर ही सप्तक और स्वरों की स्थापना  की है 
इन 22  को अलग अलग नाम भी दिए गए  जो इस प्रकार है
1  तीव्रा 
2  कुमुद्धति
3  मन्द्रा
4  छन्दोवती 
5  दयावती  
6  रंजनी
7  रक्तिक
8  रौद्री
9  क्रोधा
10 वज्रिका
11 प्रसारिणी 
12 प्रीती
13 मार्जनी
14 क्षिति
15 रक्तिका
16 संदीपनी
17 आलापिनी
18 मंदति
19 रोहिणी
20 रम्य
21 उग्रा
22 शोभिणी